Sunday, December 3, 2006

नसीब

जीवन के पथ पर अकेला चल रहा था,
ना कोई दोस्त था, ना कोई दुश्मन,
ना कोई चाह थी, ना कोई उमंग,
ना कोई गम था, ना हि कोई खुशी,
नसीब हि अपना कुछ ऐसा था ॥

तुमसे जो नजरे मिली थी,
दुनिया मेरी बदल गयी थी,
मन मे कई उमंगे थी, दिल मे तेरी चाह थी,
तुम्हार दीदार मेरी खुशी तो जुदाई मेरा गम था,
नसीब हि अपना कुछ ऎसा था ॥

मन कि उमंगो ने, दिल कि चाह ने
जब बेकरार किया था,
तुमसे अपने प्यार का ईजहार मैने किया था,
इन्कार ने तुम्हारे,
मुझे फिर से अकेला कर दिया था,
फिर भी यांदो के सहारे मै जी रहा था,
नसीब हि अपना कुछ ऎसा था ॥

तेरि यांदे दिल मे आज भी है,
मन मे उमंगे ना सही, दिल मे तेरि चाह आज भी है,
तुम्हारे दिदार के लिए तडपति ये रुह मेरी आज भी है,
नसीब हि अपना कुछ ऐसा आज भी है ॥

- मदन(Madan)

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