Friday, December 8, 2006

Untitled !

रात हो या सवेरा,
उसने मुझे बार बार पुकारा,
न जाने क्यु लगा मुझे,
मिलने से पहेले कहि वो खो गया ।

तनहाई मे कोई साथ था जरुर,
हर बार जब तडपा,
किसीका सहारा था जरुर,
बातो पे मेरी कोई मुस्कुराया तो था ।

अधेरे मे रोशनी नजर आई तो सही,
उलछी राहो मे मजिल नजर आई तो सही,
बिछ्डे कई आज मिले मुझसे,
न जाने क्यु लगा मुझे,
मिलने से पहेले कहि वो खो गया ।

कुछ अनजाने अपने से आज लग रहे है,
दुश्मन भी आज मुझसे मुस्कुराके मिले,
मुश्किलो से नही डर आज कल मुझे,
सुबह का इतजार आजकल है मुझे,
फिर न जाने क्यु लगा मुझे,
मिलने से पहेले कहि वो खो गया ।

- मदन(Madan)

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